लखनऊ। राजधानी लखनऊ में हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी निकलने वाली (Jagannath Rath Yatra Lucknow) जगन्नाथ यात्रा अपने 100 वर्ष पूरे कर रही है। यह जगन्नाथ यात्रा लखनऊ के विभिन्न स्थानों से होकर गुजरती है। सदैव की ही भाॅति इस वर्ष भी श्री जगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव, मारवाड़ी गली, अमीनाबाद, लखनऊ की इस वर्ष अपना 100 वर्ष पूर्ण कर रहा है। जिस के लिए100 ईश्वर भक्तों को 100 धार्मिक पुस्तक का वितरण किया जा रहा है। (100 वर्ष, 100 भक्त, 100 पुस्तक) (Jagannath Rath Yatra Lucknow)
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जैसा कि आप अवगत ही है कि यह (Jagannath Rath Yatra Lucknow) यात्रा मारवाड़ी गली से आरम्भ होकर, फतेहगंज, गणेशगंज, नाका हिन्डोला, गुरूद्वारा रोड, गौतमबुद्व रोड, लाटूश रोड, कैंसरबाग़ मंडी, नजी़राबाद, हनुमान मंदिर अमीनाबाद होते हुये पुनः आपने स्थान मारवाड़ी गली में महाआरती के उपरान्त सम्पन्न होती है। समिति रथयात्रा के माध्यम से नो पालीथीन, बेटी बचाओं-बेटी पढ़ाओं, नामामि गंगे, वृक्षरोपण संकल्प पर्व, ‘‘हर आंगन तुलसी विराजे’’, तम्बाकू त्याग, भारत के वीर जैसे सामाजिक विषयों पर जनता को जागरूक करती आ रही है।
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समिति ने दिनांक 22 जनवरी 2024 को राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के उपलक्ष्य में (Jagannath Rath Yatra Lucknow) सुन्दकाण्ड पाठ का आयोजन, 5100 दीपों से भव्य-दीपोत्सव कार्यक्रम, हनुमान चालीसा पाठ, हरिकीर्तन, महाआरती एवं 51 किलो लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद वितरण का कार्य किया गया। 100 वें वर्ष में प्रवेश के उपलक्ष्य में दिनांक 27 जनवरी 2024 को ईश्वर के भक्तों द्वारा श्री जगन्नाथ रथयात्रा मंदिर, मारवाड़ी गली में (Jagannath Rath Yatra Lucknow) भण्डारे का आयोजन किया जा रहा है।
जगन्नाथ पुरी को भूलोक के ‘बैकुंठ’ की संज्ञा दी गयी है। सनातन धर्मियों की अटूट आस्था है कि इस दिव्य तीर्थ नगरी के स्वामी जगन्नाथ पूर्ण परात्पर परम ब्रह्म हैं। संपूर्ण सृष्टि के पालक व संचालक की इस पावन नगरी के रथयात्रा उत्सव के दौरान आस्था के जिस विराट वैभव के दर्शन होते हैं; वह नि:संदेह अतुलनीय है। पुरी का रथयात्रा उत्सव देश दुनिया के सनातनी श्रद्धालुओं का ऐसा अनूठा त्योहार है, जिसमें जगत पालक महाप्रभु अपने भाई-बहन के साथ मंदिर से बाहर निकलकर भक्तों से मिलने उनके बीच आते हैं और अपने आशीर्वाद से सबको कृतार्थ कर यह संदेश देते हैं कि ईश्वर की दृष्टि में न कोई छोटा है, न कोई बड़ा, न कोई अमीर है और न गरीब। (Jagannath Rath Yatra Lucknow)
इस महायात्रा का तत्वदर्शन बहुत गहरा है। इस दिव्य रथयात्रा की तात्विक विवेचना करते हुए आध्यात्मिक मनीषी कहते हैं कि मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार रूपी चार पहियों पर टिके आत्मारूपी रथ पर ही परमात्मा रूपी भगवान जगन्नाथ विराजमान होते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो देह और आत्मा के मिलन की द्योतकह जगन्नाथ महाप्रभु की यह अद्भुत लोकयात्रा मनुष्य को सदैव आत्मदृष्टि बनाये रखने की प्रेरणा देती है। दिव्य तत्वदर्शन के साथ ही इस (Jagannath Rath Yatra Lucknow) महायात्रा का लौकिक पक्ष भी उतना ही भव्य और विशाल है। ब्रह्म पुराण में वर्णित कथानक के अनुसार, सतयुग में दक्षिण भारत की अवंती नगरी के राजा इंद्रद्युम्न भगवान श्रीहरि के परम भक्त थे।
उनकी इच्छा पर स्वयं देवशिल्पी विश्वकर्मा ने छद्मवेश में श्रीहरि विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के काष्ठ विग्रहों का निर्माण शुरू किया था, किंतु प्रतिमा निर्माण के नियम भंग हो जाने के कारण देवशिल्पी इन देव प्रतिमाओं को अधूरा छोड़कर चले गये। तब देव आज्ञा से वे अधोभागहीन काष्ठ विग्रह ही पुरी के श्रीमंदिर में प्रतिष्ठापित कर दिए गये। आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से आयोजित होने वाले दस दिवसीय महोत्सव के दौरान विशाल रथों से इन्हीं अधूरे देव विग्रहों की शोभायात्रा निकाली जाती है। 16 पहियों का (Jagannath Rath Yatra Lucknow) जगन्नाथ का रथ ‘नंदीघोष’, 14 पहियों का बलभद्र जी का रथ ‘तालध्वज’ और 12 पहियों का देवी सुभद्रा का रथ ‘देवदलन’ कहलाता है।
खास बात यह है कि इन विशाल रथों के निर्माण में किसी भी धातु के कील-कांटे का प्रयोग नहीं होता। आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया के दिन पूजा-अर्चना के बाद ये तीनों भाई-बहन मंदिर से निकलकर विराट रथों पर सवार होकर भक्तों के बीच जाते हैं। जगन्नाथ मंदिर से गुंडीचा मंदिर और फिर जगन्नाथ मंदिर की यह यात्रा एकादशी तिथि को संपन्न होती है। इस रथयात्रा उत्सव के अवसर पर श्रद्धालुओं को महाभोज दिया जाता है। इस दौरान (Jagannath Rath Yatra Lucknow) जगन्नाथ स्वामी को अर्पित भोग को ‘महाप्रसाद’की संज्ञा दी जाती है। मान्यता है कि जगन्नाथ जी की रसोई दुनिया की सबसे निराली रसोई है, जिसका भोजन कभी भी नहीं घटता। तभी तो इसके स्वामी जगन्नाथ कहलाते हैं।
इस अनूठी रसोई में पूरा भोजन प्रसाद मिट्टी के पात्रों में चूल्हों पर बनाया जाता है। प्रसाद बनाने के लिए लकड़ी के चूल्हे पर काष्ठ निर्मित सात पात्र एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं। इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है, फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है। मायापति के इस जाग्रत तीर्थ से जुड़े ये चमत्कारी तथ्य वर्तमान के धुर वैज्ञानिक युग में भी लोगों को दांतों तले अंगुलियां दबाने को विवश कर देते हैं। (Jagannath Rath Yatra Lucknow)
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