इस वर्ष पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होलकर जी की 300वीं जन्मशती का वर्ष मनाया जा रहा है। देवी अहिल्याबाई एक कुशल राज्य प्रशासक, प्रजाहितदक्ष कर्तव्यपरायण शासक, धर्म संस्कृति व देश की अभिमानी, शीलसंपन्नता का उत्तम आदर्श तथा रण – नीति की उत्कृष्ट समझ रखने वाली राज्यकर्ता थी। अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में भी अद्भुत क्षमता का परिचय देते हुए घर को, राज्य को; स्वयं की अखिल भारतीय दृष्टि के कारण अपनी राज्य सीमा के बाहर भी, तीर्थ क्षेत्रों के जीर्णोद्धार व देवस्थानों के निर्माण द्वारा समाज के सामरस्य को तथा समाज में संस्कृति को जिस तरह सम्हाला वह आज के समय में भी मातृशक्ति सहित हम सब के लिए अनुकरणीय उदाहरण है। साथ ही यह भारत की मातृशक्ति के कर्तृत्व व नेतृत्व की दैदीप्यमान परंपरा का उज्ज्वल प्रतीक भी है।आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती जी की 200वीं जन्मजयन्ती का वर्ष है। उन्होंने पराधीनता से मुक्त होकर काल के प्रवाह में आचार धर्म व सामाजिक रीति-रिवाजों में आयी विकृतियों को दूर कर, समाज को अपने मूल के शाश्वत मूल्यों पर खड़ा करने का प्रचंड उद्यम किया। भारत वर्ष के नवोत्थान की प्रेरक शक्तियों में उनका नाम प्रमुख है।
रामराज्य सदृश ऐसा वातावरण निर्माण होने के लिए प्रजा की गुणवत्ता व चारित्र्य तथा स्वधर्म पर दृढ़ता जैसी होना अनिवार्य है, वैसा संस्कार व दायित्वबोध सब में उत्पन्न करने वाला “सत्संग” अभियान परमपूज्य श्री श्री अनुकूलचन्द्र ठाकुर के द्वारा प्रवर्तित किया गया था। आज के बांग्लादेश तथा उस समय के उत्तर बंगाल के पाबना में जन्मे श्री श्री अनुकूलचन्द्र ठाकुर जी होमियोपैथी चिकित्सक थे तथा स्वयं की माता जी के द्वारा ही अध्यात्म साधना में दीक्षित थे। व्यक्तिगत समस्याओं को लेकर उनके सम्पर्क में आने वाले लोगों में सहज रूप से चरित्र विकास तथा सेवा भावना के विकास की प्रक्रिया ही ‘सत्संग’ बनी। 2024 से 2025 ‘सत्संग’ के मुख्यालय देवघर (झारखंड) में उस कर्मधारा की भी शताब्दी मनने वाली है।
सेवा, संस्कार तथा विकास के अनेक उपक्रमों को लेकर यह अभियान आगे बढ़ रहा है।15 नवम्बर से भगवान बिरसा मुंडा की जन्मजयंती का 150वां वर्ष प्रारंभ होगा। यह सार्धशती हमें, जनजातीय बंधुओं की गुलामी तथा शोषण से, स्वदेश पर विदेशी वर्चस्व से मुक्ति, अस्तित्व व अस्मिता की रक्षा एवं स्वधर्म रक्षा के लिए भगवान बिरसा मुंडा के द्वारा प्रवर्तित उलगुलान की प्रेरणा का स्मरण करा देगी। भगवान बिरसा मुंडा के तेजस्वी जीवनयज्ञ के कारण ही अपने जनजातीय बंधुओं के स्वाभिमान, विकास तथा राष्ट्रीय जीवन में योगदान के लिए एक सुदृढ़ आधार मिल गया है।”डीप स्टेट’, ‘वोकिज़म’, ‘कल्चरल मार्क्सिस्ट’, आजकल चर्चा में हैं। वास्तव में ये सभी सांस्कृतिक परम्पराओं के घोषित शत्रु हैं। सांस्कृतिक मूल्यों, परम्पराओं तथा जहां जहां जो भी भद्र, मंगल माना जाता है, उसका समूल उच्छेद इस समूह की कार्यप्रणाली का अंग है। समाज मन बनाने वाले तंत्र व संस्थानों को अपने प्रभाव में लाना, उनके द्वारा समाज का विचार, संस्कार, तथा आस्था को नष्ट करना, यह इस कार्यप्रणाली का प्रथम चरण होता है।
असंतोष को हवा देकर उस घटक को शेष समाज से अलग, व्यवस्था के विरुद्ध, उग्र बनाया जाता है। समाज में टकराव की सम्भावनाओं को (fault lines) ढूंढ कर प्रत्यक्ष टकराव खड़े किए जाते हैं। व्यवस्था, कानून, शासन, प्रशासन आदि के प्रति अश्रद्धा व द्वेष को उग्र बना कर अराजकता व भय का वातावरण खड़ा किया जाता है। इससे उस देश पर अपना वर्चस्व स्थापित करना सरल हो जाता है।अभी अभी बांग्लादेश में जो हिंसक तख्तापलट हुआ उसके तात्कालिक व स्थानीय कारण उस घटनाक्रम का एक पहलू है । परन्तु तद्देशीय हिंदु समाज पर अकारण नृशंस अत्याचारों की परंपरा को फिर से दोहराया गया । उन अत्याचारों के विरोध में वहां का हिंदु समाज इस बार संगठित होकर स्वयं के बचाव में घर के बाहर आया इसलिए थोड़ा बचाव हुआ । परन्तु यह अत्याचारी कट्टरपंथी स्वभाव जब तक वहां विद्यमान है तब तक वहां के हिंदुओं सहित सभी अल्पसंख्यक समुदायों के सिर पर खतरे की तलवार लटकी रहेगी । इसीलिए उस देश से भारत में होनेवाली अवैध घुसपैठ व उसके कारण उत्पन्न जनसंख्या असंतुलन देश में सामान्य जनों में भी गंभीर चिंता का विषय बना है ।
देश में आपसी सद्भाव व देश की सुरक्षा पर भी इस अवैध घुसपैठ के कारण प्रश्न चिन्ह लगते है । उदारता, मानवता, तथा सद्भावना के पक्षधर सभी के, विशेष कर भारत सरकार तथा विश्वभर के हिंदुओं के सहायता की बांग्लादेश में अल्पसंख्यक बने हिंदु समाज को आवश्यकता रहेगी । असंगठित रहना व दुर्बल रहना यह दुष्टों के द्वारा अत्याचारों को निमंत्रण देना है यह पाठ भी विश्व भर के हिंदु समाज को ग्रहण करना चाहिए । परन्तु बात यहां रुकती नहीं । अब वहां भारत से बचने के लिए पाकिस्तान से मिलने की बात हो रही है । ऐसे विमर्श खड़े कर व स्थापित कर कौनसे देश भारत पर दबाव बनाना चाहते हैं इसको बताने की आवश्यकता नहीं है । इसके उपाय यह शासन का विषय है । परंतु समाज के लिए सर्वाधिक चिन्ता की बात यह है कि समाज में विद्यमान भद्रता व संस्कार को नष्ट-भ्रष्ट करने के, विविधता को अलगाव में बदलने के, समस्याओं से पीड़ित समूहों में व्यवस्था के प्रति अश्रद्धा उत्पन्न करने के तथा असन्तोष को अराजकता में रूपांतरित करने के प्रयास बढ़े हैं । बहुदलीय प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली में सत्ता प्राप्त करने हेतु दलों की स्पर्धा चलती है । अगर समाज में विद्यमान छोटे स्वार्थ,परस्पर सद्भावना अथवा राष्ट्र की एकता व अखंडता से अधिक महत्वपूर्ण हो गये; अथवा दलों की स्पर्धा में समाज की सद्भावना व राष्ट्र का गौरव व एकात्मता गौण माने गए, तो ऐसी दलीय राजनीति में एक पक्ष की सहायता में खड़े होकर पर्यायी राजनीति के नाम पर अपनी उच्छेदक कार्यसूची को आगे बढ़ाना इनकी कार्यपद्धति है ।
यह कपोल-कल्पित कहानी नहीं बल्कि दुनिया के अनेक देशों पर बीती हुई वास्तविकता है । पाश्चात्य जगत के प्रगत देशों में इस मंत्रविप्लव के परिणाम स्वरूप जीवन की स्थिरता, शांति व मांगल्य संकट में पड़ा हुआ प्रत्यक्ष दिखाई देता है । तथाकथित “अरब स्प्रिंग” से लेकर अभी अभी पड़ोस के बांग्लादेश में जो घटित हुआ वहां तक इस पद्धति को काम करते हुए हमने देखा है । भारत के चारों ओर के – विशेषतः सीमावर्ती तथा जनजातीय जनसंख्या वाले प्रदेशों में इसी प्रकार के कुप्रयासों को हम देख रहे हैं ।